नाथ समप्रदय
➤ नाथ संप्रदाय की स्थापना 10वीं शताब्दी मे म्त्स्येन्द्रनाथ ने की थी । इस संप्रदाय मे शिव को आदिनाथ मानते हुए 9 नाथों को दिव्य को पुरुष के रूप में मान्यता प्रदान की गई है । म्त्स्येन्द्रनाथ के ग्रंथो कौलज्ञान निर्णय और अकुलवीरतंत्र में इस सिद्धांत की विस्तृत चर्चा की गई है ।
➤ इस सिद्धान्त के अनुसार शिव का नाम अकु है तथा उसकी शक्ति का नाम कुल है । इन दोनों के संयोग से सृष्टि होती है । ऐसी स्थिति में इस साधना का समस्त कार्य स्त्री को साथ रखकर सम्पन्न किया जाता है । म्त्स्येन्द्रनाथ की यह साधना वज्रयानी बौद्धो की साधना के समतुल्य हैं इसलिए म्त्स्येन्द्रनाथ को अवलोकितेश्वर के अवतार के रूप में माना गया है और तिब्बत में इन्हें सिद्धालुईपाद के रूप में जाना जाता है ।
➤ बाबा गोरखनाथ : 11वीं शताब्दी में नाथपंथ संप्रदाय के प्रचार - प्रसार का कार्य बाबा गोरखनाथ ने किया । उन्होने साधना में स्त्रियों के प्रवेश का विरोध किया और कहा कि इनके संयोग व संसर्ग से साधना संभव नहीं है । इन्होने सच्चरित्रता व जीवन कि पवित्रता पर बल दिया । इनके अनुसार शिव की परमतत्व है । जब उसकी सृष्टि की इच्छा होती है तब यह शक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाता है । इनके हठयोग व सहजयान योग का तत्कालीन समाज में तीव्रता से प्रचार हुआ ।
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